छत्तीसगढ़- 25 साल, 4 मुख्यमंत्री- जोगी, रमन, भूपेश, साय - CGKIRAN

छत्तीसगढ़- 25 साल, 4 मुख्यमंत्री- जोगी, रमन, भूपेश, साय


वाजपेयी सरकार ने छत्तीसगढ़ को देश के 26वें राज्य के रूप में स्थापित किया. राज्य स्थापना के बाद विधायकों की संख्या के आधार पर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी, जिसका कार्यकाल 3 साल का था. तब से लेकर अब तक राज्य की सत्ता पर 4 मुख्यमंत्री काबिज हुए हैं.  1 नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश से अलग कर केन्द्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने छत्तीसगढ़ को देश के 26वें राज्य के रूप में स्थापित किया. राज्य स्थापना के बाद विधायकों की संख्या के आधार पर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी, जिसका कार्यकाल 3 साल का था. राज्य बनने के बाद पहली बार साल 2003 में विधानसभा के चुनाव हुए. 2003 के बाद साल 2008, साल 2013, साल 2018 और फिर साल 2023 में विधानसभा चुनाव हुए. यानि कि वर्तमान में राज्य सरकार का छठा कार्यकाल चल रहा है, लेकिन इन छह कार्यकालों में वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय राज्य के चौथे मुखिया हैं. छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी थे. इसके बाद तीन कार्यकाल तक लगातार बीजेपी के डॉ रमन सिंह मुख्यमंत्री थे. इसके बाद कांग्रेस के भूपेश बघेल और फिर बीजेपी के विष्णु देव साय को राज्य की कमान संभाल रहे हैं. 25 साल के छत्तीसगढ़ राज्य के इन चारों के ही मुख्यमंत्री बनने की अपनी अपनी दिलचस्प कहानियां हैं.

राजनीति में कैसे आएं जोगी 

अजीत जोगी ने महज ढाई घंटे में कलेक्टरी छोड़कर राजनीति में उतरने का फैसला किया. जब राजीव गांधी के ऑफिस से उन्हें कॉल आया तो वे इंदौर कलेक्टर थे.रात में जब जोगी ने कॉल लगाया तो उन्हें पता चला कि अगले ही दिन उन्हें राज्यसभा का नामांकन भरना है.जिसकी प्रक्रिया दिग्विजय सिंह पूरी करवाएंगे.ये सुनते ही जोगी के पैरों तले जमीन खिसक गई.लेकिन परिवार और दोस्तों से सलाह लेने के बाद रात साढ़े बारह बजे से पहले उन्होंने पीएम हाउस को अपना फैसला सुनाया और फिर अगले दिन जाकर राज्यसभा का नामांकन दाखिल किया. जब साल 2000 में छत्तीसगढ़ नया राज्य बना तो अजीत जोगी सांसद के साथ राष्ट्रीय प्रवक्ता थे.जहां से उन्हें सीधा प्रदेश की कमान संभालने के लिए भेजा गया.

दिग्गी ने चुना अजीत जोगी को

आईपीएस छोड़ आईएएस और फिर आईएएस छोड़ नेता बने अजीत जोगी के मुख्यमंत्री बनने का किस्सा दिलचस्प है. कहा जाता है कि मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ नया राज्य बना और इसके पहले मुख्यमंत्री को लेकर चर्चा शुरू हुई. तब कांग्रेस के केन्द्रीय नेताओं की पसंद अजीत जोगी सीएम पद की रेस में सबसे आगे थे, लेकिन उनका मुकाबला पूर्व केन्द्रीय मंत्री और छत्तीसगढ़ के दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ला से था.

विद्या भैया के नाम से चर्चित शुक्ला राजनीतिक तिकड़मों में माहिर माने जाते थे. इधर, कांग्रेस आलाकमान ने किसी आदिवासी को सीएम बनाने का फैसला किया तो जोगी का रास्ता साफ होने लगा. लेकिन विधायकों का समर्थन बड़ा मसला था.

कांग्रेस को डर था कि शुक्ला अपने समर्थक विधायकों के साथ कोई खेल न कर दें. विधायकों को जोगी के पक्ष में लामबंद करने की जिम्मेदारी कांग्रेस नेतृत्व ने दिग्गी राजा के नाम से मशहूर दिग्विजय सिंह को दी. पार्टी के निर्देश पर दिग्गी राजा ने रायपुर पहुंच विधायकों से मिले और जोगी का समर्थन करने की अपील की. दिग्गी की बिछाई बिसात के आगे शुक्ला की एक नहीं चली. जोगी को कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया और इसका ऐलान दिग्विजय सिंह ने ही किया. हालांकि यह भी एक इत्तेफाक है कि इस घटना से करीब 14 साल पहले दिग्गी राजा ने एक राजनीतिक कार्यक्रम में अजीत जोगी के लिए कहा था कि यह एक दिन सीएम बनेगा.

रमन सिंह: एक फोनकॉल ने बदली किस्मत

दिसंबर 2003 से 16 दिसंबर 2023 तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे डॉ रमन सिंह के सीएम बनने की कहानी भी काफी चर्चित है. डॉ. रमन सिंह की राजनीतिक सफलता के बारे में कहा जाता है कि एक फोन कॉल ने उनकी किस्मत बदल दी. साल 2000 में अटल की सरकार में डॉ. रमन केंद्रीय राज्यमंत्री थे. छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद 2003 में पहला विधानसभा चुनाव होना था. तीन सालों में अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस और मजबूत हुई, लेकिन बीजेपी में बिखराव की स्थिति थी.

छत्तीसगढ़ के दूसरे मुख्यमंत्री रमन सिंह थे. जो पेशे से बीएएमएस डॉक्टर थे.साल 1975 में रमन सिंह ने बीएएमएस की डिग्री ली थी. 1990 में रमन सिंह ने पहला चुनाव लड़ा और विधायक बने.1993 में मध्यप्रदेश की विधानसभा में दोबारा विधायक बने.इसके बाद 13वीं लोकसभा में राज्य वाणिज्य उद्योग मंत्री के तौर पर काम किया. 2003 में जब छत्तीसगढ़ के चुनाव नजदीक आए तो छत्तीसगढ़ के प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए.इस चुनाव में जीत के बाद जब रमेश बैस का नाम सीएम पद के लिए सामने आया तो बैस ने केंद्र की राजनीति में ही रहने की इच्छा जताई.जिसके बाद रमन सिंह को बीजेपी ने सीएम बनाया.इसके बाद साल 2008 और फिर 2013 में भी रमन सिंह प्रदेश के सीएम रहे.

बता दें कि ऐसे में तत्कालीन बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने कहा- दो वरिष्ठ सांसदों रमेश बैस और दिलीप सिंह जूदेव में से किसी एक को प्रदेश बीजेपी की कमान देनी चाहिए, लेकिन वे तैयार नहीं हुए.

इसके बाद नायडू ने फोन कर डॉ. रमन से बात की और उन्हें जिम्मेदारी दी. फिर साल 2003 के चुनाव में बीजेपी को 90 में से 50 सीटों पर जीत मिली और रमन सिंह छत्तीसगढ़ के दूसरे मुख्यमंत्री बने.

भूपेश बघेल: आखिरी मौके पर बदला फैसला

छत्तीसगढ़ के तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में 17 दिसंबर 2018 को भूपेश बघेल ने शपथ ली. 15 सालों से लगातार बीजेपी की सरकार के बाद राज्य में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की तब भूपेश बघेल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे. राज्य में पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद भूपेश बघेल ने अपने सियासी अनुभव का उपयोग करते हुए खूब मेहनत की. बिखरी पड़ी कांग्रेस को एकजुट किया, अजीत जोगी जैसे कद्दावर नेता को अनुशासनहिनता और कांग्रेस विरोधी कार्य के आरोपों के बीच कांग्रेस से बाहर होना पड़ा.

 छत्तीसगढ़ के तीसरे सीएम भूपेश बघेल ने 1985 से अपने राजनीति की शुरुआत की.उन्होंने कांग्रेस के लिए काम करना शुरु किया. पहली बार 1993 में विधायक बने. इसके बाद मध्यप्रदेश की दिग्विजय सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला.जब प्रदेश अलग हुआ तो 2000 में अजीत जोगी के सरकार में भी भूपेश बघेल कैबिनेट मंत्री रहे.इसके बाद जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो विपक्ष में कई पदों पर रहकर कांग्रेस को मजबूत करने का काम किया.2013 में भूपेश बघेल ने झीरम घाटी में अपने बड़े नेताओं की मौत के बाद कांग्रेस को दोबारा खड़ा किया. बीजेपी की बी टीम कहे जाने वाले अजीत जोगी और उनके बेटे को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया.बघेल यहीं नहीं रुके 2018 के चुनाव से पहले टीएस सिंहदेव के साथ प्रदेश में बड़ी पदयात्राएं की.एक-एक कार्यकर्ता को जोड़ा.आखिरकार 2018 का जब रिजल्ट आया तो रमन सरकार सत्ता से जा चुकी थी. बघेल ने जिस गुटबाजी को खत्म किया,उसकी बदौलत पूरे प्रदेश में पार्टी की 68 सीटें आईं.जिसके बाद भूपेश बघेल प्रदेश के चौथे सीएम बने.

इसका नतीजा रहा कि 15 साल से सत्ता पर काबिज बीजेपी साल 2018 के चुनाव में सिर्फ 15 सीटों पर सिमट गई. कांग्रेस को चुनाव में बंपर जीत मिलने के बाद मुख्यमंत्री की दौड़ में भूपेश बघेल, डॉ चरणदास महंत, टीएस सिंहदेव और ताम्रध्वज साहू थे.

कांग्रेस आलाकमान ने मुख्यमंत्री के नाम के ऐलान से पहले दिल्ली में चारों ही नेताओं को मुलाकात के लिए बुलाया. कहा जाता है कि शपथ ग्रहण के एक दिन पहले आलाकमान ने चारों से चर्चा के बाद ताम्रध्वज साहू का नाम मुख्यमंत्री के लिए तय कर दिया, लेकिन इसके कुछ देर बाद ही अन्य वरिष्ठ नेताओं ने आपत्ति की और आपसी सहमति बनाकर भूपेश बघेल का नाम तय किया गया. हालांकि इस बीच ढाई-ढाई साल के फार्मूले की भी चर्चा हुई, जिसमें शुरू के ढाई साल भूपेश बघेल और उसके बाद टीएस सिंहदेव के सीएम बनने की चर्चा थी, लेकिन पांच साल के पूरे कार्यकाल में भूपेश बघेल ही सीएम बने रहे.

विष्णुदेव साय, आदिवासी वर्ग और अनुभव

विष्णुदेव साय का राजनीति जीवन गांव के पंच से शुरु हुआ.इसके बाद वो निर्विरोध बगिया गांव के सरपंच बने. साल 1990 में साय ने तपकरा विधानसभा (अविभाजित मध्यप्रदेश) से चुनाव लड़ा और जीते. साल 1998 तक ने तपकरा विधानसभा से विधायक रहे. इसके बाद 1999 में विष्णुदेव साय को लोकसभा की टिकट मिली.जिसमें उन्होंने जीत दर्ज की.इसके बाद 2004, 2009 और 2014 यानी लगातार 4 बार सांसद बने.पीएम मोदी की सरकार जब सत्ता में आई तो 2014 में विष्णुदेव साय को इस्पात और खनन मंत्रालय की बड़ी जिम्मेदारी दी गई. विष्णुदेव साय को केंद्रीय नेतृत्व ने साल 2006 में छत्तीसगढ़ का प्रदेशाध्यक्ष बनाया था.इसके बाद 2011 में विष्णुदेव साय दोबारा प्रदेशाध्यक्ष बने.इसके बाद तीसरी बार साल 2020 से लेकर 2022 तक विष्णुदेव साय को तीसरी बार प्रदेशाध्यक्ष की कमान सौंपी गई.

साल 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर वापसी की और तमाम घोटालों का आरोप झेल रही भूपेश बघेल सरकार सत्ता से बाहर हो गई. लेकिन चर्चा इस बात की थी कि प्रदेश का नया मुखिया किसको बनाया जाएगा. बीजेपी संगठन ने चुनाव परिणाम के करीब 5 दिन बाद प्रदेश कार्यालय में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और विधायकों की मौजूदगी में पूर्व केन्द्रीय राज्यमंत्री, तीन बार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे आदिवासी वर्ग के अनुभवी नेता विष्णुदेव साय के नाम का ऐलान हुआ. लेकिन इस बात की चर्चा चुनाव के दौरान प्रचार के लिए आए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के उस बयान के बाद से ही शुरू हो गई थी, जिसमें उन्होंने कुनकुरी की जनता को संबोधित करते हुए कहा था कि आप विष्णुदेव साय को जिताइये और बड़ा आदमी इन्हें हम बनाएंगे.

अनुभव का मिला फायदा : विष्णुदेव साय चार बार सांसद, दो बार विधायक,एक बार केंद्रीय राज्य मंत्री और दो बार प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं. 2014 में बीजेपी की सत्ता आने के बाद उन्हें केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया था.साल 2020 में विष्णुदेव साय को बीजेपी का प्रदेशाध्यक्ष भी बनाया गया.विष्णुदेव साय की गिनती संघ के करीबी नेताओं में होती है.प्रदेश के संघटन में काम करने का विष्णुदेव साय को बड़ा अनुभव है.रमन सिंह के भी काफी करीबी साय माने जाते हैं.साय प्रदेश के दूसरे आदिवासी मुख्यमंत्री हैं. अजीत जोगी पहले आदिवासी मुख्यमंत्री के तौर पर जाने जाते हैं.

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