छत्तीसगढ़ के शक्तिपीठों में भक्ति का माहौल - CGKIRAN

छत्तीसगढ़ के शक्तिपीठों में भक्ति का माहौल


नवरात्रि में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-आराधना होती है. पहले दिन प्रतिप्रदा को घटस्थापना होती है. नौ दिनों तक मंदिरों में मां की प्रतिमा सजाई जाती है.पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है. लोग व्रत रख कर पूजन-हवन करते हैं.हिंदू शास्त्र के मुताबिक सितंबर माह में कई त्योहार और पर्व मनाए जाते हैं. इनमें सबसे पहले पितृ-पक्ष आते हैं. पितृ-पक्ष के 15 दिनों में सभी लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनका तर्पण करते हैं. इनके समाप्त होते ही शारदीय नवरात्रि 2025 की शुरुआत होती है. इस बार ये नवरात्रि सोमवार 22 सितंबर 2025 से शुरू हो रहे हैं.  सोमवार 22 सितंबर से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होने जा रही है। प्रदेशभर के देवी मंदिरों में जोर-शोर से तैयारियां चल रही हैं। बस्तर के दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी, डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी, बिलासपुर के रतनपुर स्थित महामाया मंदिर और राजधानी रायपुर समेत कई शक्तिपीठों में इस बार श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ने की संभावना है। डोंगरगढ़ में भीड़ प्रबंधन के लिए ज़िगज़ैग व्यवस्था की गई है ताकि किसी भी तरह की भगदड़ न हो। यहां तक कि विदेशी भक्तों ने भी ज्योत प्रज्वलन के लिए अग्रिम बुकिंग कराई है। वहीं, भक्तों की सुविधा को देखते हुए 10 एक्सप्रेस ट्रेनों का अस्थायी ठहराव डोंगरगढ़ में किया गया है।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख शक्तिपीठ

रतनपुर (महामाया मंदिर)

बिलासपुर जिले का यह मंदिर मां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती को समर्पित है। इसे 52 शक्तिपीठों में गिना जाता है और कोसलेश्वरी के नाम से भी पूजा जाता है।

डोंगरगढ़ (बम्लेश्वरी मंदिर)

करीब 2000 साल पुराने इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है। इसे कभी वैभवशाली कामाख्या नगरी कहा जाता था। मां बम्लेश्वरी को राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी भी माना जाता है।

दंतेवाड़ा (दंतेश्वरी मंदिर)

यहां देवी सती का दांत गिरा था, इस कारण यह 52 शक्तिपीठों में शामिल है। 14वीं शताब्दी में बना यह मंदिर स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है।

रायपुर (महामाया मंदिर)

लगभग 1400 साल पुराना यह मंदिर हैहयवंशी राजाओं द्वारा बनवाया गया था। यहां मां लक्ष्मी, महामाया और समलेश्वरी की संयुक्त पूजा होती है।

अंबिकापुर (महामाया अंबिका देवी)

किवदंती है कि यहां महामाया का धड़ स्थित है, जबकि सिर रतनपुर में है। इस मंदिर का महत्व शारदीय नवरात्र में और बढ़ जाता है।

सक्ती (मां चंद्रहासिनी)

देवी सती का दाढ़ गिरने से यह स्थान शक्तिपीठ बना। यहां विशाल मूर्तियां और पौराणिक झांकियां श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं।

कोरबा (मां सर्वमंगला)

स्थानीय जमींदार परिवार द्वारा निर्मित यह मंदिर गुफाओं और नदी के बीच बसे अनोखे स्वरूप के लिए प्रसिद्ध है।

धमतरी (मां अंगारमोती)

गंगरेल बांध बनने के बाद 52 गांवों के लोगों ने अपनी आराध्या देवी को यहां स्थापित किया। आज भी माता अंगारमोती को लोग ग्राम देवी मानते हैं।

गरियाबंद (जतमई माता)

यहां झरनों से घिरा मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र है। मान्यता है कि ये जलधाराएं स्वयं माता की दासियां हैं।

महासमुंद (मां चंडी पीठ)

बागबहारा स्थित यह मंदिर पहले तंत्र साधना का प्रमुख स्थल माना जाता था। प्राकृतिक शिला पर माता का स्वरूप उकेरा गया है।

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