प्रदेश भर में आज बड़े उत्साह से मनाया जा रहा पोला तिहार
विश्व में भारत की पहचान संस्कृति, उत्सवधर्मी के रुप में है। देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पर्व मनाएं जाते हैं. छत्तीसगढ़ में आज पोला त्योहार का उत्साह गांव से लेकर शहर तक नजर आ रहा है. छत्तीसगढ़ के इस पारंपरिक त्योहार में कृषि कार्यों में लगे बैलों की पूजा का विधान है. इस दिन किसान कृषि कार्यों से विरत रहते हैं, और बैलों को नहलाकर उसे सजाकर पूजा करते हैं. घरों में मिट्टी, लकड़ी या पीतल के बने बैलों की पूजा करते हैं, जिन्हें बच्चे खेलते हैं. इस अवसर पर ठेठरी-खुरमी और अईरसा जैसे पारंपरिक व्यंजन भी बनाए जाते हैं. वृषभ पूजन दिवस भाद्र पद मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या को होता है, जिसे छत्तीसगढ़ में पोला-पोरा तिहार कहा जाता है. इस समय तक धान की रोपाई पूरी हो जाती है। बैलों का काफी हद तक काम पूरा हो जाता है। कृषि प्रधान राज्य होने के कारण बैलों का आभार जताने के लिए पोला पर्व मनाया जाता है। इस दिन किसान बैलों की पूजा करते हैं।
पोला तिहार छत्तीसगढ़ की परम्परा, संस्कृति और लोक जीवन की गहराइयों से जुड़ा है. यह त्योहार किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए विशेष महत्व रखता है. इस त्योहार में उत्साह से बैलों और जाता-पोरा की पूजा कर अच्छी फसल और घर को धन-धान्य से परिपूर्ण होने के लिए प्रार्थना की जाती है. ये त्योहार खेती-किसानी और पशुधन का महत्व बताता है. बता दें कि पोला तिहार का त्योहार भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है.
पोला पर्व पर ऐसे की जाती है पूजा
पोला पर्व की पूर्व रात्रि को गर्भ पूजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती हैं अर्थात धान के पौधों मे दुध भरता है। इसी कारण पोला के दिन किसी को भी खेतों में जाने की अनुमति नहीं होती। रात के समय जब गांव के सब लोग सो जाते हैं तब गांव का पुजारी-बैगा , मुखिया और कुछ पुरुष सहयोगियों के साथ अर्धरात्रि को गांव तथा गांव के बाहर सीमा क्षेत्र के कोने-कोने में प्रतिष्ठित सभी देवी देवताओं के पास जा- जाकर विशेष पूजा आराधना करते हैं। यह पूजन प्रक्रिया रात भर चलता है। इनका प्रसाद उसी स्थल पर ही ग्रहण किया जाता है घर ले जाने की मनाही रहती है। इस पूजन में ऐसा व्यक्ति नहीं जा सकता जिसकी पत्नी गर्भवती हो।
