छत्तीसगढ़ वाले कर रहे हैं 10 महीने मशरूम खेती
छत्तीसगढ़ में मशरूम की नई किस्मों की खेती से न केवल पोषण की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है बल्कि इससे प्रदेश के कृषि क्षेत्र में नवाचार को भी बढ़ावा मिलेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में यह खेती किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी सहायक साबित होगी. छत्तीसगढ़ की जलवायु मशरूम की खेती के लिए बेहद अनुकूल है. यहां न सिर्फ सफेद मशरूम बल्कि गुलाबी, नीला और पीले रंग के ऑयस्टर मशरूम की भी सफल खेती की जा रही है. ये सभी मशरूम ऑयस्टर प्रजाति के अंतर्गत आते हैं और इनकी खेती साल के करीब 10 महीनों तक आसानी से की जा सकती है.बरसात का मौसम इसके लिए बेस्ट सीजन है. उन्होंने कहा कि मशरूम की ये सभी किस्में बेहद सुपाच्य होती हैं और आसानी से पच जाती हैं. इनमें विटामिन D की प्रचुर मात्रा पाई जाती है, जो शरीर में कैल्शियम को अवशोषित करने में सहायक होता है. साथ ही इनमें विटामिन B12 भी पाया जाता है, जो शरीर के तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने के लिए जरूरी है. इन रंगीन ऑयस्टर मशरूम में मौजूद पोषक तत्व शरीर में कैल्शियम की कमी को दूर करने में सहायक होते हैं, जिससे हड्डियों का विकास बेहतर होता है. मशरूम की इन किस्मों में प्राकृतिक रूप से कैंसर से लड़ने वाले कंपाउंड भी मौजूद होते हैं, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं.
इन मशरूम में पोटैशियम की मात्रा सोडियम की तुलना में बहुत ज्यादा होती है, जिससे यह हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों के लिए बेहद फायदेमंद माने जाते हैं. इसके अलावा इनमें मौजूद कोलेस्टो फाइबर पेट से जुड़ी समस्याओं जैसे कब्ज, गैस और अपच में राहत देने में मदद करते हैं. इन मशरूम की प्रजातियों में 8 ऐसे जरूरी एमिनो एसिड पाए जाते हैं, जो मानव शरीर खुद नहीं बना सकता और जिन्हें हमें बाहरी स्रोतों से प्राप्त करना होता है. इसके अलावा यह मिनरल्स जैसे आयरन, जिंक, सेलेनियम, फॉस्फोरस से भरपूर होते हैं, जो शरीर के समुचित विकास में अहम भूमिका निभाते हैं.
ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार का अवसर
रंगीन ऑयस्टर मशरूम की खेती न केवल स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लाभकारी है बल्कि यह ग्रामीण युवाओं और किसानों के लिए रोजगार का एक बड़ा माध्यम भी बन सकता है. कम लागत और कम जगह में इसकी खेती कर ज्यादा लाभ लिया जा सकता है.