नगर निगम चुनाव: बागी बिगाड़ेंगे मेयर का गणित - CGKIRAN

नगर निगम चुनाव: बागी बिगाड़ेंगे मेयर का गणित


बागियों की नाराजगी से उनके समर्थक किसी भी हाल में कांग्रेस पर भरोसा नहीं जताएंगे और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलता हुआ दिखाई दे रहा है। इसका सीधा असर कांग्रेस के महापौर पद की प्रत्याशी दीप्ति दुबे के मतों पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। दरअसल, कांग्रेस में टिकट बंटवारे के बाद से ही अब तक लगभग पांच बागी प्रत्याशी सामने आ चुके हैं।

कुछ निर्दलीय प्रत्याशी बन गए हैं, तो कुछ ने पार्टी ही छोड़ दी है। ऐसे में इसका सीधा असर कांग्रेस के महापौर पद की प्रत्याशी दीप्ति दुबे के मतों पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। दरअसल, बागियों की नाराजगी से उनके समर्थक किसी भी हाल में कांग्रेस पर भरोसा नहीं जताएंगे और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलता हुआ दिखाई दे रहा है। यानी कुल मिलाकर पांच वार्डों में जहां से बागियों का टिकट काटा गया है, उन क्षेत्रों से भाजपा की महापौर दावेदार मीनल चौबे को बढ़त मिल सकती है। इतना ही नहीं, इसका असर उक्त वार्डों से खड़े कांग्रेस के पार्षद प्रत्याशियों को भी नुकसान होने की आशंका है।

इन वार्डों से आए हैं बागी सामने

पं. रविशंकर शुक्ल वार्ड

इंदिरा गांधी वार्ड

शहीद हेमू कालाणी वार्ड

शहीद राजीव पांडेय वार्ड

महंत लक्ष्मी नारायण दास वार्ड

इंटरनेट मीडिया जनसंपर्क के लिए बड़ा माध्यम

वार्डों के लिए मैदान में उतरे प्रत्याशियों के लिए इंटरनेट मीडिया भी एक बड़ा प्रचार माध्यम बन चुका है। भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही प्रत्याशी जनसंपर्क के अलावा इंटरनेट मीडिया पर भी अपनी सक्रियता दर्ज करा रहे हैं और उसके माध्यम से भी मतदाताओं को रिझाने का प्रयास कर रहे हैं।

भाजपा में सामने एकजुटता, लेकिन अंदर डर

टिकट कटने के बाद भाजपा में सामने देखने से तो एकजुटता दिखाई दे रही है, लेकिन कई ऐसे बड़े चेहरे भी रहे हैं, जिन्होंने दावेदारी की थी और उन्हें टिकट नहीं दिया गया है। ऐसे में अंदर ही अंदर खेल उनके द्वारा भी खेला जा रहा है, जिसमें आउटर से लेकर शहर के बीच के भी वार्ड शामिल हैं।

जिनके टिकट कटे, वे भी दिख रहे हैं नाखुश

बागियों के अलावा कई अन्य लोगों के भी टिकट भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों से काटे गए हैं। इससे टिकट की प्रत्याशा में बैठे लोगों के साथ ही उनके समर्थकों में भी नाराजगी का आलम देखा जा रहा है। ऐसे में वे भी अंदर ही अंदर दोनों ही पार्टियों के लिए भितरघाती साबित हो सकते हैं और इसका असर मतों पर देखने को मिल सकता है।

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