पराली से बढ़ाएं खेती की उत्पादकता और बढ़ाएं मिट्टी की उर्वरा शक्ति
धान कटाई के बाद बचे पैरा को किसान काटना जरूरी नहीं समझते, फसल के ऐसे अनुपयोगी पैरा यानी पराली को कचरा मानते हुए नई फसल की तैयारी कि लिए खेत में जला देते हैं. इस तरह से फसल अवशेष को जलाने से कृषि, पर्यावरण और स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है, जबकि फसल अवशेष के समुचित प्रबंधन से मृदा और पर्यावरणीय स्वास्थ्य संरक्षण संभव है. पैरा जलाए जाने से हो रही समस्या को देखते हुए कृषि विभाग ने किसानों के लिए एडवाइजरी जारी किया है. कृषि विभाग के मुताबिक, पैरा का उपयोग न केवल मिट्टी की सेहत के लिए अच्छा है, बल्कि इससे विभिन्न उत्पाद भी तैयार किए जा सकते हैं, जैसे डिस्पोजल प्लेट्स, कप, छप्पर निर्माण सामग्री, पैकेजिंग सामग्री, कागज, बायो एथेनॉल और प्लाईवुड. बड़े उद्योगों में पैरा का ईंधन के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है.
कृषि विभाग के अनुसार, पराली जलाने से भूमि की उर्वरक क्षमता में कमी आती है, साथ ही वायुमंडलीय प्रदूषण में भी वृद्धि होती है. इसके बजाय पराली का समुचित प्रबंधन न केवल मृदा की सेहत बनाए रखता है, बल्कि इससे खाद भी तैयार की जा सकती है. कृषि विभाग ने किसानों को पराली के उपयोग की कुछ प्रभावी विधियों के बारे में जानकारी दी है, जैसे मल्चर, हैप्पी सीडर, और सुपर सीडर का उपयोग कर पराली को मिट्टी में मिला सकते हैं. इसके अलावा पराली से जैविक खाद भी बनाई जा सकती है, जो मृदा की उर्वरक क्षमता बढ़ाती है.
कृषि विभाग के अनुसार, किसानों को पराली के निस्तारण के लिए डी-कंपोजर का इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है. इसके लिए 200 लीटर पानी में 2 किलो गुड़ और 2 किलो चने का बेसन मिलाकर एक घोल तैयार किया जाता है, जिसे 10 लीटर की मात्रा में 1 एकड़ धान की पराली पर छिड़काव करने से पैरा को खाद में परिवर्तित किया जा सकता है. इतना ही नहीं बेलर का उपयोग करके पैरा का बंडल तैयार कर चारा के रूप में संग्रहित किया जा सकता है.
पैरा जलाने से विषैली गैसों का होता है उत्सर्जन
इतना ही नहीं कृषि विभाग ने किसानों को पैरा जलाने के दुष्परिणाम बताएं हैं. इसमें कहा गया है कि पराली जलाने से वायु मण्डलीय प्रदुषण बढ़ता है, इसके जलने से कार्बन मोनो-ऑक्साईड, मिथेन, पॉलीसाइक्लीक एरोमैटिक हाईड्रोकार्बन और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक जैसी विषैली गैसों का उत्सर्जन होता है.
इस प्रदुषण के आसपास के क्षेत्रों में स्मॉग या धुएं के कोहरे की मोटी परत तैयार होती है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है. इसकी वजह से त्वचा और आंखों में जलन से लेकर गंभीर हृदय और स्वास्थ्य संबंधी रोग देखने को मिलते हैं. पराली जलाने से मृदा पर भी विपरित प्रभाव पडता है. यह मृदा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों को नष्ट कर देता है. पराली जलाने से मृदा का तापमान बढ़ता है, जिससे मृदा में उपलब्ध सूक्ष्म जीव विस्थापित या नष्ट हो जाते हैं.
पैरा से बना सकते हैं सामग्री
कृषि विभाग के मुताबिक, पराली का उपयोग न केवल मिट्टी की सेहत के लिए अच्छा है, बल्कि इससे विभिन्न उत्पाद भी तैयार किए जा सकते हैं, जैसे डिस्पोजल प्लेट्स, कप, छप्पर निर्माण सामग्री, पैकेजिंग सामग्री, कागज, बायो एथेनॉल और प्लाईवुड. बड़े उद्योगों में पैरा का ईंधन के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है.
फसलों के उत्पादन और उसे बाजार तक पहुंचाने के बाद किसान बचे हुए अवशेष यानी कि पराली में आग लगा देते हैं. जिससे कम समय में ही ये अवशेष नष्ट हो जाते हैं, लेकिन इसके कई हानिकारक प्रभाव देखने को मिलते हैं.
पराली जलाने के दुष्प्रभाव प्रभाव
1. वायु प्रदूषण
पराली जलाने से पार्टिकुलेट मैटर, कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसे हानिकारक प्रदूषक निकलते हैं, जो वायु प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. इससे श्वसन स्वास्थ्य प्रभावित होता है और मौजूदा सांस से जुड़ी समस्याएं होती हैं.
2. ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन
पराली जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीन हाउस गैस निकलती हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में तेजी आती है.
3. मिट्टी पर प्रभाव
पराली जलाने से क्रॉप रेसिड्यू में मौजूद आवश्यक पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है. इससे लंबे समय तक कृषि उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
4. बायोडायवर्सिटी में बाधा
पराली जलाने से उत्पन्न हुई तेज गर्मी मिट्टी में रहने वाले जीवों को नुकसान पहुंचा सकती है, जो पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकती है और बायोडायवर्सिटी में गिरावट ला सकती है.
5. हेल्थ रिस्क
पराली जलाने से जो धुआं उठता है उसमें हानिकारक पदार्थ होते हैं, जो मनुष्यों और जानवरों के लिए स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या पैदा करते हैं, जिसमें सांस लेने में तकलीफ, एलर्जी और आंखों में जलन शामिल हैं.