कबीरधाम के कण-कण में शिव का वास, भोरमदेव मंदिर तक गुंज रहा है हर-हर महादेव
कहते है कि काशी के कण-कण में भगवान शिव का वास है। मां गंगा पावन तट पर बसे विश्व की धार्मिक राजधानी काशी को शायद इसीलिए मोक्षदायिनी भी कहा जाता है। ऐसी ही काशी की समतुल्यता की झलक छत्तीसगढ़ की कबीरधाम जिले में दिखाई देती है। कबीरधाम जिले कवर्धा शहर में विश्व का एक मात्र पवित्र-पावन पंचमुखी शिव लिंग बुढ़ा महादेव विराजित है। यह स्वमं-भू शिव लिंग है। ऐसी मान्यता है। कवर्धा से महज 18 किलोमीटर की दूरी पर 11वीं शताब्दी की प्राचिन व ऐतिहासिक बाबा भोरमदेव मंदिर का शिवालय है। प्राचीन भोरमदेव मंदिर पहुंचते तक पूरे लगभग 18 किलोमीटर तक कवर्धा की जीवन दायिनी पवित्र सकरी नदी यहां प्रवाहित होती है। वहीं कवर्धा से महज 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ग्राम डोंगरिया। डोंगरिया में सकरी नदी की सहायक नदी फोक नदी के तट पर बसा हुआ है। इसी नदी में आदि अनंतकाल से नदी के मध्यम में स्वयं-भू शिव जी का वास है, जिसे जलेश्वर महोदव के नाम से जाना जाता है। आदि अनंत काल से धार्मिक राजधानी काशी सहित अन्य आश्रमों से कवर्धा में दण्डी सन्यासियों का आगमन होता रहा है और कवर्धा के प्राचीन व ऐतिहासिक स्वमं-भू पंचमुखी शिव लिंग में दण्डी सन्यासियों द्वारा विशेष पूजा अर्चना भी की जाती है। देश के अन्य दिव्य ज्योर्तिलिंगों की भांति दण्डी स्वामियों द्वारा दण्ड सहित इस पंच मुखी शिव लिंग बूढ़ामहादेव को प्रणाम किया जाता है। किवदंती अनुसार इसीलिए भी दण्डी सन्यासियों द्वारा कवर्धा नगरी को छोटा काशी की संज्ञा दी जाती है।
कबीरधाम कवर्धा का नाम जुबां पर आते ही बाबा भोरमदेव मंदिर की प्रतिबिम्ब दिखाई देती है। मैकल पर्वत के तलटली पर पहाड़ियां से घिरा हुआ बाबा भोरमदेव मंदिर का शिवालय वैसे तो पूरे साल भर हर-हर महादेव से गुंजायमान रहता है। लेकिन पवित्र सावन माह का प्रारंभ होते ही यहां पहले सोमवार से हजारों भक्तों और कांवरियों का आने का सिलसिला शुरू हो जाता है। सावन मास के तीन सोमवार से अब तक बाबा भोरमदेव मंदिर में लगभग 02 लाख से अधिक श्रद्धालुओं का आगमन हो चुका है। वहीं हजारों कांवरियों द्वारा बाबा भोरमदेव मंदिर के गर्भ गृह में विराजित शिव लिंग का जलाभिषेक किया जा चुका है। कवर्धा के अलग-अलग बोलबम समिति के कांवरियों द्वारा मध्यप्रदेश के अमरकंटक से मां नर्मदा नदी की पवित्र जल कांवर में लेकर 180 किलोमीटर की जंगल-पहाड़ियों और पथरीलि रास्तों से होते हुए पदयात्रा करते हुए कबीरधाम जिले के हनुमंत खोल से गुजरकर जिले के जलेश्वर महोदव में प्रथम आगमन होता है। यहां हजारों की संख्या में प्रतिवर्ष कावरियों द्वारा जलेश्वर महादेव में जलाभिषेक की जाती है। बोल-बम पदयात्रियों का अगला पड़ाव कवर्धा से 18 किलोमीटर दूर बाबा भोरमदेव मंदिर तक होती है।इसके बाद पदयात्रा करते हुए कवर्धा के प्राचीन पंचमुखी बुढ़ामहोदव पहुंचकर श्रद्धापूर्वक शिव लिंग में जलाभिषेक और पूजा अर्चना की जाती है। यहां हजारों की संख्या में काविरयों द्वारा मां नर्मदा नदी की जल से बाबा भोरमदेव मंदिर में विजारित शिव जी का जलाभिषेक किया जाता है।