सरगुजा के टिकट वितरण में हो सकता है बड़ा उलटफेर
सरगुजा की 14 विधानसभा सीट पर टीएस सिंहदेव का माना जाता है प्रभाव
विधानसभा चुनाव से छह महीना पहले टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगा था कि अब सरगुजा की बाजी सेट हो जाएगी, लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। टीएस सिंहदेव तो लगभग-लगभग सेट हो गए हैं, लेकिन सरगुजा अपसेट हो गया है। सिंहदेव का सरगुजा में दौरा चल रहा है और उनके विरोधियों की धड़कन तेज हो गई है। बताया जा रहा है कि मंत्री अमरजीत भगत, पूर्व मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम, विधायक बृहस्पत सिंह और चिंतामणि महाराज ने तो सिंहदेव का खुलकर विरोध किया था। अब उनकी विधानसभा सीट पर अन्य दावेदार ताल ठोंक रहे हैं। टीएस सिंह देव ने कांग्रेस को प्रदेश में 90 में से 60 से 75 सीटें मिलने का भी दावा किया है. उन्होंने चुनाव बाद मुख्यमंत्री की रेस में भूपेश बघेल के पहली कतार में होने की बात कहकर एक तरह से प्रदेश के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को संदेश देने की कोशिश की है कि वे अब पूरी तरह से भूपेश बघेल और पार्टी के साथ हैं.
कांग्रेस और भाजपा के लिए सरगुजा का रण काफी अहम
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के लिए सरगुजा का रण काफी अहम माना जा रहा है। भाजपा ने पहली सूची में 21 प्रत्याशियों की घोषणा की है, जिसमें सरगुजा की तीन विधानसभा सीट है। कांग्रेस ने भी सरगुजा पर फोकस करते हुए चुनाव से छह महीना पहले मंत्री टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की गई। पिछले विधानसभा चुनाव में नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से सिंहदेव को कांग्रेस के केंद्रीय संगठन ने फ्री हैंड दिया था। एक-एक सीट पर सिंहदेव की सहमति के बाद उम्मीदवार घोषित किए गए थे।
जशपुर में भी बदले-बदले से हैं समीकरण
सरगुजा संभाग के जशपुर की तीन विधानसभा सीट पर भी इस बार समीकरण बदले-बदले नजर आ रहे हैं। यहां की एक सीट पर वरिष्ठ आदिवासी नेता और हाल ही में भाजपा छोड़कर आए नंदकुमार साय की दावेदारी है। वहीं, एक सीट पर एक आइएएस की मां की दावेदारी सामने आई है। यही नहीं, एक रिटायर्ड आइएएस जशपुर की एक सीट से पिछले चुनाव से ही टिकट की मांग कर रहे हैं। हालांकि जशपुर की तीनों सीट के विधायकों का रिपोर्ट कार्ड संतोषजनक नहीं पाया गया है। अब सबकी निगाह चुनाव समिति पर टिकी हुई है, जिसमें सीएम भूपेश बघेल, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के साथ खुद टीएस सिंहदेव सदस्य हैं।
बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती ये भी रहने वाली है कि भूपेश बघेल के मुकाबले वो किसे चेहरे बनाएगी क्योंकि प्रदेश के लोगों के बीच भूपेश बघेल जैसी लोकप्रियता फिलहाल बीजेपी के किसी नेता की नहीं है. छत्तीसगढ़ में 2018 में हार के बाद बीजेपी अभी तक 4 प्रदेश अध्यक्ष, एक नेता प्रतिपक्ष और तीन प्रदेश प्रभारी बदल चुकी है. बीजेपी के लिए चिंता की बात ये है कि विधानसभा उपचुनाव, नगरीय निकाय चुनाव, पंचायत चुनाव सभी में छत्तीसगढ़ के लोगों ने बीजेपी को नकारते हुए कांग्रेस पर ही भरोसा जताया था. अब भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच सुलह से कांग्रेस की अंदरूनी कलह का लाभ भी बीजेपी को नहीं मिलेगा. ऐसा नहीं है कि बीजेपी के लिए उम्मीद नहीं बची है. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की नजर में छत्तीसगढ़ का चुनाव प्राथमिकता में है. यही कारण है कि पार्टी के वरिष्ट नेता और चुनावी रणनीति में माहिर माने जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिछले एक महीने में 3 बार छत्तीसगढ़ का दौरा कर चुके हैं.
बीजेपी के लिए आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी छत्तीसगढ़ काफी मायने रखता है. यहां कुल 11 लोकसभा सीटें हैं. इनमें से 4 एसटी और एक सीट एससी के लिए आरक्षित है. 2018 में विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद 4 महीने बाद ही हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी पर छत्तीसगढ़ की जनता ने भरोसा जताया. 2019 में बीजेपी को इनमें से 9 सीटों पर जीत मिली और 2 सीट कांग्रेस के खाते में गई. वहीं 2009 और 2014 में बीजेपी को छत्तीसगढ़ की 11 में से 10-10 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी और कांग्रेस को दोनों बार ही सिर्फ एक सीट पर जीत मिली थी. अलग राज्य बनने के बाद जब पहली बार 2004 में छत्तीसगढ़ के लोगों ने लोकसभा के लिए वोट दिया था तो उस वक्त भी बीजेपी 10 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी.